जब महाबली मेघनाथ ने लक्ष्मण जी पर कई दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया, तो सभी अस्त्र उनके प्रणाम करते ही वापस लौट गए। लेकिन मेघनाथ को हार मानना कहाँ आता था?
उसने शक्ति नामक अजेय अस्त्र का प्रयोग किया, जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। पूरी वानर सेना और श्रीराम ये देखकर चिंतित हो उठे।
सुसेन वैद्य ने गहरी जाँच के बाद बताया, "लक्ष्मण जी को बचाने का एकमात्र उपाय संजीवनी बूटी है, जो केवल द्रोणागिरी पर्वत पर मिल सकती है।
लेकिन समस्या यह है कि संजीवनी सूर्योदय से पहले लानी होगी, वरना लक्ष्मण जी की मृत्यु हो जाएगी।" यह सुनते ही सभी की चिंता बढ़ गई, मानो समय उनके हाथ से निकल रहा हो।
त्रिजटा ये दुखद समाचार माता सीता को सुनाने पहुंची। उसे लगा कि माता सीता का दिल टूट जाएगा। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि खबर सुनते ही सीता मुस्कुराने लगीं! त्रिजटा को यह देखकर और भी हैरानी हुई।
उसने हिम्मत जुटाकर पूछा, "माता! लक्ष्मण जी की मृत्यु की बात सुनकर आप हंस क्यों रही हैं?"
सीता ने शांत और दृढ़ स्वर में कहा, "जब लक्ष्मण तीनों लोकों के स्वामी श्रीराम की गोद में सिर रखकर सो रहे हों, तो भला मृत्यु उनकी ओर कैसे देख सकती है?
और जब तक महाबली हनुमान संजीवनी लेकर नहीं लौटते, सूर्य में इतनी ताकत कहाँ कि वह उदय हो जाए।"
माता सीता की यह बात सुनकर त्रिजटा स्तब्ध रह गई। जो बात किसी को असंभव लग रही थी, वो माता सीता की आस्था में मुमकिन थी।
यह विश्वास, यह धैर्य दर्शाता है कि जब आप भगवान के संरक्षण में हों, तो कोई ताकत आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती!
अस्वीकृति (Disclaimer)
NOTE: यह कथाएँ प्राचीन पौराणिक कहानियों से ली गई हैं। इनमें वर्णित घटनाएँ और पात्र सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि या गलतफहमी के लिए लेखक जिम्मेदार नहीं हैं।
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