करवा चौथ की तीसरी कथा:
करवा की तपस्या, माता गौरी और भगवान गणेश की कृपा से उसके पति की जीवन वापसी की कहानी।
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। साहूकार की बेटी का नाम करवा था। करवा बहुत ही धार्मिक और पतिव्रता स्त्री थी।
शादी के बाद, उसने अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखने का संकल्प लिया। यह व्रत न केवल पति की लंबी आयु के लिए होता है, बल्कि यह स्त्री की भक्ति और समर्पण का प्रतीक भी है।
करवा ने व्रत के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर अपना व्रत शुरू किया। उसने पूरे दिन निर्जल रहकर चांद के निकलने का इंतजार किया।
लेकिन जैसे-जैसे दिन बढ़ा, करवा की हालत कमजोर होती गई। उसके भाई उसकी स्थिति देखकर बहुत चिंतित हो गए। उन्होंने अपनी बहन के प्रति प्रेम और चिंता व्यक्त की और सोचा कि किसी भी तरह उसे इस कठिनाई से बचाना चाहिए।
बाई ने अपने भाईयों से कहा, "हम इसे भूखा और प्यासा नहीं देख सकते। चलो, हम इसे व्रत तोड़ने में मदद करें।
इसके बाद भाइयों ने पेड़ पर जाकर एक दीपक जलाया और उसे चांद के रूप में दिखाया। उन्होंने करवा से कहा, "देखो बहन, चांद आ गया है। अब तुम अपना व्रत तोड़ सकती हो।"
करवा, अपने भाइयों की बातों पर विश्वास कर गई और बिना सोचे-समझे दीपक को चांद समझकर व्रत तोड़ दिया।
जैसे ही उसने पहला निवाला मुंह में डाला, उसे बुरी खबर मिली कि उसके पति की अचानक तबीयत बिगड़ गई है। उसकी आंखों में आंसू आ गए और उसने समझ लिया कि उसने अपनी गलती की है।
वह भगवान गणेश और माता गौरी का स्मरण करती हुई, अपने पति को बचाने के लिए प्रार्थना करने लगी।
करवा ने फिर से संकल्प लिया कि वह अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ फिर से करवा चौथ का व्रत करेगी। उसने रातभर तपस्या की और अपने पति की लंबी आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।
जब चांद निकला, करवा ने विधिपूर्वक चंद्रमा को अर्घ्य दिया और अपनी भक्ति को समर्पित किया। इस बार उसने पूरे मन और श्रद्धा से भगवान गणेश और माता गौरी का ध्यान किया।
माता गौरी उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और भगवान गणेश ने उसके पति को पुनः जीवनदान देने का आश्वासन दिया।
भगवान यमराज ने करवा की भक्ति और श्रद्धा को देखकर, उसके पति को जीवनदान दिया। करवा और उसका पति पुनः मिल गए और उनका जीवन सुखमय हो गया।
तब से करवा चौथ का व्रत न केवल पतिव्रता स्त्रियों के लिए, बल्कि सभी के लिए श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक बन गया है। यह कथा हर साल करवा चौथ पर पढ़ी जाती है ताकि लोग इस व्रत की महत्ता और शक्ति को समझ सकें।
अस्वीकृति (Disclaimer)
NOTE: यह कथाएँ प्राचीन पौराणिक कहानियों से ली गई हैं। इनमें वर्णित घटनाएँ और पात्र सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि या गलतफहमी के लिए लेखक जिम्मेदार नहीं हैं।
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